Friday 6 April 2012

Hetal Mahendrakumar Sangani : दिल कीआरज़ू......

दिल की यह आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले....
लो बन गया नसीब की तुम हम से आ मिले.....
आँखों के एक इशारे की ज़हमत तो दीजिए....
कदमो में दिल बिछा दूं इजाजत तो दीजिए....
ग़म को गले लगा लू जो जखम आप का मिले....
दिल की यह आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले....
हमने उदासियो में गुजारी हें ज़िन्दगी....
लगता था दर फरेब, बेवफाई से कभी कभी....
ऐसा ना ही की ज़ख़्म फिर नया कोई मिले....
दिल की यह आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले....
कल तुम जुदा हुए थे जहा साथ छोड़ कर....
हम आज तक खड़े हैं उस्सी दिल के मोड़ पर...
हम को इस इंतज़ार का कुछ तो सिल्लाह मिले....
दिल की यह आरज़ू थी कोई दिलरुबा मिले....

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